एक बार हमें करनी पड़ी रेल की यात्रा
देख सवारियों की मात्रा
पसीने लगे छूटने
हम घर की तरफ़ लगे फूटने
इतने में एक कुली आया
और हमसे फ़रमाया—
साहब अन्दर जाना है?
हमने कहा, हाँ भाई जाना है
उसने कहा, अन्दर तो पहुँचा दूँगा
पर रुपये पूरे पचास लूँगा
हमने कहा, सामान नहीं, केवल हम हैं
तो उसने कहा, क्या आप किसी सामान से कम हैं?
जैसे तैसे डिब्बे के अन्दर पहुँचे
यहाँ का दृश्य तो ओर भी घमासान था
पूरे का पूरा डिब्बा अपने आप में एक हिन्दुस्तान था
कोई सीट पर बैठा था, कोई खड़ा था
जिसे खड़े होने की भी जगह नहीं मिली, वो सीट के नीचे पड़ा था
इतने में एक बोरा उछलकर आया ओर गँजे के सर से टकराया
गँजा चिल्लाया, यह किसका बोरा है ?
बाजू वाला बोला इसमें तो बारह साल का छोरा है
तभी कुछ आवाज़ हुई और
इतने में एक बोला, चली चली
दूसरा बोला, या अली
हमने कहा, काहे की अली, काहे की बलि
ट्रेन तो बग़ल वाली चली!