‘Chalte Hain Chalo’, a poem by Prem Mishra
जहाँ रातों में
होती है
सितारों की बरसात,
आसमानी रोशनी से
जगमगाता है
सारा आकाश,
वहाँ तुम और मैं
चलते हैं, चलो!
जहाँ सूर्य निकलता
सबसे पहले,
पर्वतों से झाँकती
छनकर आती किरणें,
भोर होती है जहाँ
सुन्दरतम, अद्वितीय,
वहाँ तुम और मैं
चलते हैं, चलो!
जहाँ फैला हो दूर तक
सप्त सिन्धु का
नीला, असीमित जल,
कहीं शान्ति से
बहता हुआ
कहीं लहर बनकर उछलता हुआ,
वहाँ तुम और मैं
चलते हैं, चलो!
जहाँ धवल मेघ
छूते हों पर्वत शिखरों को
निर्मल, स्वच्छ, नीर लिए,
शोभित होते सुन्दर सरवर
दूर देश से आकर के
पक्षी करते जहाँ कलरव,
वहाँ तुम और मैं
चलते हैं, चलो!
कहते हैं एक शहर ऐसा
जहाँ दिन-रात, एक जैसा
जब सारा जग ये सोता है
तब भी वो जगमग रहता है
सारी रात जहाँ मस्ती के
सारे साधन रहते हैं
वहाँ तुम और मैं
चलते हैं, चलो!
और कहीं जो हम जा ना पाए
तो मिलना मुझसे रोज़ वहीं
जहाँ बस हम ही रहे
जहाँ रहे कोई और नहीं
जब नींद तुम्हें आ जाए
और नींद मुझे आ जाए
वहाँ तुम और मैं
चलते हैं, चलो!
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