चना जोर गरम।

चना बनावैं घासी राम।
जिनकी झोली में दूकान।।

चना चुरमुर-चुरमुर बोलै।
बाबू खाने को मुँह खोलै।।

चना खावैं तोकी मैना।
बोलैं अच्छा बना चबैना।।

चना खाएँ गफूरन, मुन्ना।
बोलैं और नहिं कुछ सुन्ना।।

चना खाते सब बंगाली।
जिनकी धोती ढीली-ढाली।।

चना खाते मियाँ जुलाहे।
दाढ़ी हिलती गाहे-बगाहे।।

चना हाकिम सब खा जाते।
सब पर दूना टैक्स लगाते।।

चना जोर गरम।।

■■■

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है।