‘Ek Laal Diary Hai Uske Paas’, a poem by Mukesh Prakash
एक लाल ‘डायरी’ है
मेज़ में उसकी
जिसमें वो कुछ लिखती है
लाल स्याही से
महीन में चार-पाँच दिन
वो लिखती है
लाल रंग की
मोहर्रम की सड़कें,
बग़ीचों के कोनों में
लगे वो लाल ‘लैम्पपोस्ट’
वो लिखती है
गुलमोहर के पैरों तले
रौंदे लाल फूल,
वो लिखती है
लाल गणेश पर,
लाल ही दिखता है
उसको शिवलिंग
वो लिखती है वही
ख़ून जो बहुत है
सभ्यताओं में
परम्पराओं में,
वो लिखती है
लाल परियों पर
जो लौटकर
न आयीं अपने देश कभी
वो लिखती है
ख़ुद को
महीने में चार-पाँच दिन,
एक लाल डायरी है!