‘Ungliyon Ke Poron Par Din Ginti’, a poem by Mamta Kalia
उँगलियों पर गिन रही है दिन
खाँटी घरेलू औरत
सोनू और मुनिया पूछते हैं
‘क्या मिलाती रहती हो माँ
उँगलियों की पोरों पर’
वह कहती है ‘तुम्हारे मामा की शादी का दिन
विचार रही हूँ
कब की है घुड़चढ़ी, कब की बरात!’
घर का मुखिया यही सवाल करता है
तो आरक्त हो जाते हैं उसके गाल
कैसे बताए कि इस बार
ठीक नहीं बैठ रहा
माहवारी का हिसाब!
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