हुस्न उस शोख़ का अहा-हाहा
जिन ने देखा कहा अहा-हाहा
ज़ुल्फ़ डाले है गर्दन-ए-दिल में
दाम क्या क्या बढ़ा अहा-हाहा
तेग़-ए-अबरू भी करती है दिल पर
वार क्या क्या नया अहा-हाहा
आन पर आन वो अजी ओ हो
और अदा पर अदा अहा-हाहा
नाज़ से जो न हो वो करती है
चुपके चुपके हया अहा-हाहा
ताइर-ए-दिल पे उस का बाज़-ए-निगाह
जिस घड़ी आ पड़ा अहा-हाहा
उस की फुरती और उस की लप-छप का
क्या तमाशा हुआ अहा-हाहा
बज़्म-ए-ख़ूबाँ में जब गया वो शोख़
अपनी सज-धज बना अहा-हाहा
की ओ हो-हो किसी ने देख ‘नज़ीर’
कोई कहने लगा अहा-हाहा!