हुस्न उस शोख़ का अहा-हाहा
जिन ने देखा कहा अहा-हाहा

ज़ुल्फ़ डाले है गर्दन-ए-दिल में
दाम क्या क्या बढ़ा अहा-हाहा

तेग़-ए-अबरू भी करती है दिल पर
वार क्या क्या नया अहा-हाहा

आन पर आन वो अजी ओ हो
और अदा पर अदा अहा-हाहा

नाज़ से जो न हो वो करती है
चुपके चुपके हया अहा-हाहा

ताइर-ए-दिल पे उस का बाज़-ए-निगाह
जिस घड़ी आ पड़ा अहा-हाहा

उस की फुरती और उस की लप-छप का
क्या तमाशा हुआ अहा-हाहा

बज़्म-ए-ख़ूबाँ में जब गया वो शोख़
अपनी सज-धज बना अहा-हाहा

की ओ हो-हो किसी ने देख ‘नज़ीर
कोई कहने लगा अहा-हाहा!

नज़ीर अकबराबादी
नज़ीर अकबराबादी (१७४०–१८३०) १८वीं शदी के भारतीय शायर थे जिन्हें "नज़्म का पिता" कहा जाता है। नज़ीर आम लोगों के कवि थे। उन्होंने आम जीवन, ऋतुओं, त्योहारों, फलों, सब्जियों आदि विषयों पर लिखा। वह धर्म-निरपेक्षता के ज्वलंत उदाहरण हैं। कहा जाता है कि उन्होंने लगभग दो लाख रचनायें लिखीं। परन्तु उनकी छह हज़ार के करीब रचनायें मिलती हैं और इन में से ६०० के करीब ग़ज़लें हैं। आप ने जिस अपनी तमाम उम्र आगरा में बिताई जो उस वक़्त अकबराबाद के नाम से जाना जाता था।