इंदिरा छंद ‘पथिक’
तमस की गयी ये विभावरी।
हृदय-सारिका आज बावरी॥
वह उड़ान उन्मुक्त है भरे।
खग प्रसुप्त जो गान वो करे॥
अरुणिमा रही छा सभी दिशा।
खिल उठा सवेरा, गयी निशा॥
सतत कर्म में लीन हो पथी।
पथ प्रतीक्ष तेरे महारथी॥
अगर भूत तेरा डरावना।
पर भविष्य आगे लुभावना॥
मत रहो दुखों को विचारते।
बढ़ सदैव राहें सँवारते॥
कर कभी न स्वीकार हीनता।
मत जता किसी को तु दीनता॥
जगत से हटा दे तिमीर को।
‘नमन’ विश्व दे कर्म वीर को॥
***
लक्षण छंद:-
“नररलाग” वर्णों सजाय लें।
मधुर ‘इंदिरा’ छंद राच लें।।
“नररलाग” = नगण रगण रगण + लघु गुरु
111 212 212 12,
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
***
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया