काम करेगी उसकी धार
बाक़ी लोहा है बेकार
कैसे बच सकता था मैं
पीछे ठग थे, आगे यार
बोरी-भर मेहनत पीसूँ
निकले इक मुट्ठी-भर सार
भूखे को पकवान लगें
चटनी, रोटी, प्याज, अचार
जीवन है इक ऐसी डोर
गाँठें जिसमें कई हज़ार
सारे तुग़लक चुन-चुनकर
हमने बनायी है सरकार
शुक्र है राजा मान गया
दो दूनी होते हैं चार
प्यार वो शै है हस्ती जी
जिसके चेहरे कई हज़ार!
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