‘Kaayarta’, a poem by Nishant Upadhyay

सबसे बड़ा विद्रोह है
किसी समाज के ख़िलाफ़
ख़ुद को बना लेना सक्षम,

सबसे ज़्यादा बहरा करता है
किसी अपने के दूर जाने पर
छा जाने वाला सन्नाटा,

सबसे मुश्किल प्रायश्चित है
तुम्हारी यादों के कोटरों में
भूले बिसरे चेहरों का आना,

सबसे थका हुआ हाथ है
जो आगे नहीं बढ़ता
रोटी का कौर तोड़ने के लिये,

गोलियों और चीख़ों के बीच
एक कविता लिखना है
सबसे ज़्यादा बुरी मौत।

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