‘Lajja’, Hindi Kavita by Rahul Boyal
इतना चाटा गया है झूठ को
कि कण्ठ को लज्जा आती है अब
कोई भी सत्य उच्चारते हुए
और इन लज्जाओं ने अपने इतिहास को
कर लिया है इतना पुष्ठ
कि भविष्य के बारे में सोचते ही
मस्तिष्क को मूर्छा आ जाती है।
हमारी आत्मा का तापमान शून्य है
जबकि हमारे यकृत अब भी
शीतरक्त जीवों का प्रमुख आहार हैं
हमारे प्राणों में इतनी निर्लज्जता भरी है
कि मृत्यु भी लज्जित है ले जाते हुए प्राण
उसके पास भी नहीं है नरक से बुरी कोई जगह।
विज्ञान के पास भी नहीं है ऐसी तकनीक
कि वह नाप सके हमारे पतन का गुरुत्व
न ही वेदों में बचा है ऐसा कोई मन्त्र
जिसको दोहराकर लज्जाओं से भरे
समय की यन्त्रणाओं से बचा जा सके।
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