महात्मा गाँधी के उद्धरण | Mahatma Gandhi Quotes
‘राष्ट्रवाद का सच्चा स्वरूप’ से
“मेरे लिए देशप्रेम और मानव-प्रेम में कोई भेद नहीं है; दोनों एक ही हैं। मैं देशप्रेमी हूँ, क्योंकि मैं मानव-प्रेमी हूँ।”
“मेरा देशप्रेम वर्जनशील नहीं हैं। मैं भारत के हित की सेवा के लिए इंग्लैंड या जर्मनी का नुक़सान नहीं करूँगा।”
“यदि कोई देशप्रेमी उतना ही उग्र मानव-प्रेमी नहीं है, तो कहना चाहिए कि उसके देशप्रेम में उतनी न्यूनता है।”
“राष्ट्रवाद की मेरी कल्पना यह है कि मेरा देश इसलिए स्वाधीन हो कि प्रयोजन उपस्थित होने पर सारा ही देश मानव-जाति की प्राणरक्षा के लिए स्वेच्छापूर्वक मृत्यु का आलिंगन करे। उसमें जातिद्वेष के लिए कोई स्थान नहीं है। मेरी कामना है कि हमारा राष्ट्रप्रेम ऐसा ही हो।”
“राष्ट्रवाद में कोई बुराई नहीं है; बुराई तो उस संकुचितता, स्वार्थवृत्ति और बहिष्कार-वृत्ति में है, जो मौजूदा राष्ट्रों के मानस में ज़हर की तरह मिली हुई है। हर एक राष्ट्र दूसरे की हानि करके अपना लाभ करना चाहता है और उसके नाश पर अपना निर्माण करना चाहता है।”
“मेरा देशप्रेम कोई बहिष्कारशील वस्तु नहीं बल्कि अतिशय व्यापक वस्तु है और मैं उस देशप्रेम को वर्ज्य मानता हूँ जो दूसरे राष्ट्रों को तकलीफ़ देकर या उनका शोषण करके अपने देश को उठाना चाहता है।”
“यदि भारत तलवार की नीति अपनाए, तो वह क्षणिक-सी विजय पा सकता है। लेकिन तब भारत मेरे गर्व का विषय नहीं रहेगा।”
“मेरा धर्म भौगोलिक सीमाओं से मर्यादित नहीं है। यदि उसमें मेरा जीवंत विश्वास है, तो वह मेरे भारत-प्रेम का भी अतिक्रमण कर जाएगा। मेरा जीवन अहिंसा-धर्म के पालन द्वारा भारत की सेवा के लिए समर्पित है।”
“यदि भारत ने हिंसा को अपना धर्म स्वीकार कर लिया और यदि उस समय मैं जीवित रहा, तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूँगा।”
“अपने लिए तो मैं यह भी कह सकता हूँ कि मैं देशी और विदेशी के फ़र्क़ से नफ़रत करता हूँ।”
‘साम्प्रदायिक एकता’ से
“धर्म तो इस बात में है कि आसपास चाहे जितना शोरगुल होता रहे, फिर भी हम अपनी प्रार्थना में तल्लीन रहें। यदि हम एक-दूसरे को अपनी धार्मिक इच्छाओं का सम्मान करने के लिए बाध्य करने की बेकार कोशिश करते रहे, तो भावी पीढ़ियाँ हमें धर्म के तत्व से बेख़बर जंगली ही समझेंगी।”
“ऐसे किसी प्रचार की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिसमें दूसरे धर्मों को गालियाँ दी जाती हो, कारण, दूसरे धर्मों की निंदा में परमत-सहिष्णुता का सिद्धांत भंग होता है।”
“मुझे इस बात का पूरा निश्चय है कि यदि नेता न लड़ना चाहें, ता आम जनता को लड़ना पसंद नहीं है।”
अन्य
“मैं कितना ही तुच्छ होऊँ, पर जब मेरे माध्यम से सत्य बोलता है तब मैं अजेय हो जाता हूँ।”
“मेरा अनुयायी सिर्फ़ एक है और वह ख़ुद मैं हूँ।”
“भला ‘गाँधीवादी’ भी कोई नाम में नाम है? उसके बजाय ‘अहिंसावादी’ क्यों नहीं? क्योंकि गाँधी तो अच्छाई और बुराई, कमज़ोरी और मज़बूती, हिंसा और अहिंसा का मिश्रण है, जब कि अहिंसा में कोई मिलावट नहीं है।”
“मुझे इस महात्मा की पदवी को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिए। यद्यपि मैं एक असहयोगी हूँ, पर यदि ऐसा कोई विधेयक लाया जाए जिसके अनुसार मुझे महात्मा कहना और मेरे पाँव छूना अपराध घोषित किया जा सके तो मैं ख़ुशी-ख़ुशी उसका समर्थन करूँगा। जहाँ मैं अपना क़ानून चलाने की स्थिति में हूँ, जैसे कि अपने आश्रम में, वहाँ ऐसा करने पर एकदम पाबंदी है।”
“मैं अविवेकी लोगों द्वारा की जानेवाली आराधना-स्तुति से सचमुच परेशान हूँ। इसके स्थान पर यदि वे मेरे ऊपर थूकते, तो मुझे अपनी असलियत का सच्चा अंदाज़ा रहता।”
“मैं ‘संत के वेश में राजनेता’ नहीं हूँ। लेकिन चूँकि सत्य सर्वोच्च बुद्धिमत्ता है, इसलिए मेरे कार्य किसी शीर्षस्थ राजनेता के से कार्य प्रतीत होते हैं। मैं समझता हूँ कि सत्य और अहिंसा की नीति के अलावा मेरी कोई और नीति नहीं है।”
“बहुत से लोग इस भ्रम में पड़े हुए हैं कि मेरे पास सारे रोगों का उपचार है। काश! ऐसा होता। हालाँकि कह नहीं सकता कि ऐसा हो तो वह विशुद्ध वरदान ही साबित होगा। अगर मैं ऐसी बातों का बिना विचारे सर्वत्र प्रयोग करने लगता तो लोगों को असहाय बना देता।”
“तुम सब्जियों के रंग में सुंदरता क्यों नहीं देख पाते? और निरभ्र आकाश भी तो सुंदर है। लेकिन नहीं, तुम तो इंद्रधनुष के रंगों से आकर्षित होते हो, जो केवल एक दृष्टिभ्रम है। हमें यह मानने की शिक्षा दी गई है कि जो सुंदर है, उसका उपयोगी होना आवश्यक नहीं है और जो उपयोगी है, वह सुंदर नहीं हो सकता। मैं यह दिखाना चाहता हूँ कि जो उपयोगी है, वह सुंदर भी हो सकता है।”
“यदि मैं अपने अंदर ईश्वर की उपस्थिति अनुभव न करता तो प्रतिदिन इतनी कंगाली और निराशा देखते-देखते प्रलापी पागल हो गया होता या हुगली में छलाँग लगा लेता।”
“जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब कुछ चीज़ों के लिए हमें बाह्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। हमारे अंदर से एक हल्की-सी आवाज़ हमें बताती है, ‘तुम सही रास्ते पर हो, दाएँ-बाएँ मुड़ने की ज़रूरत नहीं है, सीधे और सँकरे रास्ते पर आगे बढ़ते जाओ।'”
“मैं मानता हूँ कि मुझमें अनेक सुसंगतियाँ हैं। लेकिन चूँकि लोग मुझे ‘महात्मा’ कहते हैं, इसलिए मैं इमर्सन की उक्ति को साधिकार दुहराते हुए कह सकता हूँ कि मूर्खतापूर्ण सुसंगति छोटे दिमाग़ों का हौवा है। मेरा ख़याल है कि मेरी असंगतियों में भी एक पद्धति है।”
“मुझे जीवन भर ग़लत समझा जाता रहा। हर एक जनसेवक की यही नियति है। उसकी खाल बड़ी मज़बूत होनी चाहिए। अगर अपने बारे में कही गई हर ग़लत बात की सफ़ाई देनी पड़े और उन्हें दूर करना पड़े, तो जीवन भार हो जाए।”
“अंततः मेरा काम ही शेष रह जाएगा, जो मैंने कहा अथवा लिखा है, वह नहीं।”
महात्मा गाँधी का चर्चित लेख 'मेरे सपनों का भारत'