‘Main Kewal Bharat Nahi’, Hindi Kavita by Adarsh Bhushan

मैं
ठहराव हूँ,
मैं
खोज नहीं किसी की,
आवाज़ हूँ,
जज़्बात हूँ,
जंगम हूँ,
स्थावर नहीं,
शुष्क हूँ,
नम हूँ,
शताब्दियों की शृंखला हूँ,
मैं
शिथिल हूँ,
मैं भारत नहीं,
मैं केवल भारत नहीं,
बस देश नहीं,
कोई नाम नहीं,
मैं आसमाँ की उलझी हुई,
डोरियों के बीच कहीं
बिखरा हुआ पंख हूँ!
मुझे समेट लो
मुझे समेट लो
मैंने अभी-अभी उड़ना सीखा है,
बादलों को अपनी चादर बनाकर,
उनपर अपनी छाप छोड़ना सीखा है
इस चादर को रौंदों मत,
बिखरने दो
सातवें आसमान तक!

मैं केवल भारत नहीं
एक सुनहरा पंख हूँ,
जिसने अपनी स्याही को निशब्द बनाकर,
तूफ़ानों में हवा से बातें करना सीखा है,
खोखली रजाई में किसी सर्द रात की तरह
खुद को पसीजना सीखा है,
पूस की काँपती रात से लेकर,
जेठ की कड़कती दुपहरी तक,
एक बरगद की तरह खड़ा रहा हूँ
अकिंचन और निडर!

मैं केवल भारत नहीं,
एक कोरा काग़ज़ हूँ,
मुझे मुख़्तलिफ़ रंग में रंगकर
अपने छिछले स्वाभिमान से
कहीं कुतर न देना!
बस सँवार दो!
मैं नाज़ुक हूँ!
मैं नाज़ुक हूँ!
पर उस अजन्मी कोख की
कराहती आवाज की तरह नहीं,
लहू से भरा एक पूरा शरीर हूँ
स्वस्थ और समृद्ध!

मैं केवल भारत नहीं,
आवाम के सुर्ख़ पन्नो में लिपटा,
कोई रंग हूँ,
इंकलाब की धड़कनों की अंक में समाया,
केसरिया तिलक हूँ,
मैं
सफ़ेद चादरों की नमी हूँ,
सूरज की पहली थिरकती किरण से झलकता,
सब्ज़ क्षितिज हूँ!

मैं केवल भारत नहीं
एक पूरी किताब हूँ,
तह लगाकर एक नाव बना लो,
और अरमानों की ताल में ,
लहरा दो!
मुझमें इतिहास पिरो दो!
एक किताब बनाकर नयी लकीरें सिल देना
जिल्द लगाकर,
चहारदीवारी के किसी कोने में
तख़्त पे ना रख देना!
मैं आजाद था
हूँ
रहूँगा!
मैं केवल भारत नहीं!

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आदर्श भूषण
आदर्श भूषण दिल्ली यूनिवर्सिटी से गणित से एम. एस. सी. कर रहे हैं। कविताएँ लिखते हैं और हिन्दी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है।