मैं तुम्हें भूलने के पथ पर हूँ
मुझे परवाह नहीं यदि भूल जाऊँ
अपनी लिखी सारी पंक्तियाँ
मैं लगातार चलती जा रही हूँ
मेरे पीछे उठा मानसून भी अपनी गति पर है
उसे बरसने की जल्दी है
तनिक भनक तक नहीं लगेगी लोगों को
यदि वर्षा के साथ मिल गए मेरे अश्रु भी
तिस पर बरसे जो पत्थर
तो वहीं गले तक रुँधकर
ले लूँगी समाधि और गिनती रहूँगी
पृथ्वी के हृदय की तेज़ धड़कन
मेरी देह को छूकर जड़ तक पहुँचे पानियों से
यदि अगली सुबह फूटे जो अंकुर
तो मेरे वक्षों में दौड़ जाएगी ममत्व धारा
और वापस आ-आकर टकराएँगी
मेरे कानों से, मेरी लिखी पंक्तियाँ
तुम्हें भूलने का पथ इतना भरा हुआ है अर्थों से
मानो कि कोई बूढ़ी कविता
मृत्यु के बाद की प्रथम सीढ़ी पर
चढ़ता हुआ व्यक्ति गिरा गया है
कुछ लिखे हुए पन्ने अपने पीछे
इस पथ पर चलते हुए ज़्यादा नहीं तो
एक-आध पन्ना तो दबोच ही लूँगी
और पढ़ते-पढ़ते लूँगी बेपरवाह झपकियाँ
भ्रम के ताले की चाबी
लगेगी
फँसेगी
लगेगी
उनका स्वर मधुर होगा!