‘Maujoodgi’, a poem by Vishesh Chandra Naman

एक बेशक़ीमती दिन बचा रहता है
कल के आने तक
हम बाँसुरी में इंतज़ार के पंख लपेट हवा को बुलाने से ज़्यादा, कुछ नहीं करते
एक अनसुनी धुन बची रहती है
हर फूँक से पहले

तुम दीवार पर लगे चित्र को देख मुस्कुराते हो
बेशक, तुम्हारी मुस्कुराहट चित्र से परे दृश्य को ना देख पाने का एक अफ़सोस भर है
चित्र के पीछे छिपी दीवार पर जमी मिट्टी को खुरचो
उग आने की जगह निश्चित नहीं होती

जिन जंगलों से गुज़रोगे
वहाँ आखेट के लिए सिर्फ़ तितलियाँ ही बचेंगी
तुम तीर चलाकर किसी हवा को ज़ख्मी कर जाओगे, पत्तों से ख़ून टपकेगा, तितलियाँ फ़रार हो जाएँगी मीलों दूर

उड़ने की ललक ही अभेद रख पाती है देह को
नव कण पराग मौजूद रहता है फूलों पर, हर नव छुअन से पहले…

यह भी पढ़ें: ‘महकेगी रूई : मैं सूँघूँगा लगभग गुलाब’

Recommended Book:

विशेष चंद्र ‘नमन’
विशेष चंद्र नमन दिल्ली विवि, श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज से गणित में स्नातक हैं। कॉलेज के दिनों में साहित्यिक रुचि खूब जागी, नया पढ़ने का मौका मिला, कॉलेज लाइब्रेरी ने और कॉलेज के मित्रों ने बखूबी साथ निभाया, और बीते कुछ वर्षों से वह अधिक सक्रीय रहे हैं। अपनी कविताओं के बारे में विशेष कहते हैं कि अब कॉलेज तो खत्म हो रहा है पर कविताएँ बची रह जाएँगी और कविताओं में कुछ कॉलेज भी बचा रह जायेगा। विशेष फिलहाल नई दिल्ली में रहते हैं।