‘Maujoodgi’, a poem by Vishesh Chandra Naman
एक बेशक़ीमती दिन बचा रहता है
कल के आने तक
हम बाँसुरी में इंतज़ार के पंख लपेट हवा को बुलाने से ज़्यादा, कुछ नहीं करते
एक अनसुनी धुन बची रहती है
हर फूँक से पहले
तुम दीवार पर लगे चित्र को देख मुस्कुराते हो
बेशक, तुम्हारी मुस्कुराहट चित्र से परे दृश्य को ना देख पाने का एक अफ़सोस भर है
चित्र के पीछे छिपी दीवार पर जमी मिट्टी को खुरचो
उग आने की जगह निश्चित नहीं होती
जिन जंगलों से गुज़रोगे
वहाँ आखेट के लिए सिर्फ़ तितलियाँ ही बचेंगी
तुम तीर चलाकर किसी हवा को ज़ख्मी कर जाओगे, पत्तों से ख़ून टपकेगा, तितलियाँ फ़रार हो जाएँगी मीलों दूर
उड़ने की ललक ही अभेद रख पाती है देह को
नव कण पराग मौजूद रहता है फूलों पर, हर नव छुअन से पहले…
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