आठ आषाढ़ गया
मृगशिरा ने लिखा ख़त
आर्द्रा को
वो आना चाहती है
हमारे खेत, हमारे घर
उसे चाहिए मंज़ूरी हमसे
हम तपे हुए हैं, पिघलते हैं, परेशान हैं
पर नहीं है रज़ामंद
हमारे धुओं का वेग
काटता है
पूर्वी हवाओं के वेग को
पर, कई हैं आसरे में
कहते हैं
तुम आ सकती हो
पहाड़ियों को पार कर
बादलों को ओढ़कर
मूसलाधार
कई दरवाज़े बंद हैं
कई स्वागत को आतुर
उठती है वह
बंगाल की खाड़ी से
इतराकर, इठलाकर, देर-सबेर
सारे शिकवे भुलाकर
कजरी गा-गाकर
आती है घनघोर
खोल जाती है सभी के किवाड़!