मैं जीने के लिए
सच का साथ चुनता हूँ

मैं कविताएँ लिखता हूँ
मैं साहित्य पढ़ता हूँ

मेरा कोई धर्म नहीं
सिवाय आदमी होने के

मैं किसी ईश्वर की पूजा नहीं करता
मेरा कोई ईष्ट देवता नहीं

इस तरह उनकी नज़रों में
मैं एक देशद्रोही हूँ

उन्हें आपत्ति है मेरे सच कहने से,
उनका मानना है
मेरी कविताओं को कोई हक़ नहीं
कि वे दबे, कुचले, शोषितों, वंचितों की आवाज़ बने,
उन्हें आपत्ति है
कि मैं विज्ञान का विद्यार्थी होकर
साहित्य क्यों पढ़ता हूँ,
उन्हें आपत्ति है कि
मैं किसी स्त्री से बेइंतहा मुहब्बत करता हूँ,
उन्हें आपत्ति है कि
मैं उनकी विचारधारा से सहमत नहीं,
उनके जैसे परिधान नहीं पहनता
उनके धर्म के पताके नहीं फहराता
उन्हें आपत्ति है कि
मेरी मण्डली में उनकी जमात का कोई
नेता, हत्यारा, बलात्कारी या पूँजीपति नहीं,
उन्हें आपत्ति है कि
मैं नागपुरिया फ़रमान की जगह
अपने देश के संविधान को मानता हूँ

उनकी आपत्ति ही अगर
देशद्रोही होने की परिभाषा है
तो मुझे फ़ख़्र है
अपने देशद्रोही होने पर

और मैं यह चाहूँगा कि
देश की पूरी अवाम देशद्रोही बन जाए…

परितोष कुमार पीयूष
【बढ़ी हुई दाढ़ी, छोटी कविताएँ और कमज़ोर अंग्रेजी वाला एक निहायत आलसी आदमी】 मोबाइल- 7870786842