हम दोनों उस
पटरियों के माफिक है
जिस पर जिंदगी की
रेलगाड़ी चल कर
अपना मुकम्मल सफर
आखिरी स्टेशन तलक
तय कर सकती हैं

जिंदगी की रेल गाड़ी
चल सके
खूब रफ्तार से
संसार में
शायद इसीलिए
गले नहीं लगती
वें दोनों पटरिया

ना जाने क्यों
अजीब सी उनवान लिए
दिल में कसक लिए
कि मिलेंगी
वें दोनों कभी
जो हैं ,समानांतर

पटरिया मिलेंगी
पर कब
जब
जिंदगी की रेलगाड़ी
सीटी बजाते बजाते
थक चुकी होगी
तथा पहुंच चुकी होगी
अपने आखिरी स्टेशन पर
और चिर निद्रा में लीन
हो चुकी होगी
जिंदगी की रेल गाड़ी

तब पटरियों को नष्ट
कर दिया जाएगा
लौह को गला दिया
जाएगा , तब जाकर
प्रलयावस्था में मिलेंगे
समानांतर प्रणव प्रेमी।

पुनीत तिवारी
बी.ए (आनर्स - दर्शनशास्र) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय