मौन, मृत्यु और अकेलेपन से सम्वाद करती कवयित्री लुइस ग्लुक की दो कविताएँ (लुइस ग्लुक को हाल ही में साहित्य श्रेणी में नोबल पुरस्कार 2020 प्रदान किया गया है)
अनुवाद: उपमा ऋचा
1
तुम ट्रेन पकड़ती हो
और खो जाती हो
तुम खिड़की पर अपना नाम लिखती हो
और खो जाती हो
इस दुनिया में ऐसी बहुत-सी जगह हैं,
हाँ, बहुत-सी ऐसी जगह हैं
जहाँ तुम अपना यौवन लेकर जाती हो
लेकिन कभी नहीं लौटतीं…
2
उसने कहा, मैं अपने हाथों से थक गई हूँ
मैं उड़ने के लिए पंख चाहती हूँ
लेकिन इंसान बने रहने के लिए (हाथ ज़रूरी हैं), हाथों के बग़ैर तुम क्या करोगी?
मैं इंसानों से थक गई हूँ,
मैं सूरज पर रहना चाहती हूँ!
माया एंजेलो की कविता 'मुझे मत दिखाना अपनी दया'