Poems: Pallavi Vinod

1

मानवता प्रेम की भूखी है
प्रेम नफ़रत पर हमेशा हावी रहा

घर में बढ़ते झगड़ों का कारण
महाभारत की तस्वीर बताया गया,
बुद्ध की मूर्ति सदा मन को सुकून देती रही

हम हिंसा की ख़बरों को बच्चों से छिपाते रहे
कहीं दूर हज़ारों बच्चों से ज़िन्दगी चुरायी गयी

बिलखती मासूमियत की आँखों में देखना
उनकी आँखों में सिर्फ़ भूख है
पेट की ही नहीं, प्रेम की भी

धर्म किसके लिए बचाना है!

2

काश! स्वेद की ख़ुशबू से तर-बतर श्रमिक जान पाता
मकान ईंट गारे से नहीं उसकी मेहनत से बनता है
अपने सृजन की कलात्मकता पर रीझ पाता

देख पाता इंसान, पेट की भूख से ज़्यादा ज़रूरी होती है दिमाग़ की भूख
दिल ही नहीं दिमाग़ को भी, प्रेम के अवयवों से सन्तुष्ट किया जा सकता है।

3

ये दुनिया कितनी समृद्ध है
बेशक़ीमती गाड़ियों,
आलीशान बंगलों
ब्रांडेड एसेसरीज़ से सजी

चमचमाते होटेल्स के एक दिन के किराए से भी कम में
महीने का ख़र्च चलाता आदमी जिसके टिफ़िन में
आज सिर्फ़ रोटी और अचार है,
बिटिया को बाहर भेजने के लिए पैसे जोड़ रहा है

पिता के पसीने से भीगी शर्ट को सुखाती
बेटी उनको महँगी खुशियाँ देने के सपने देखती है

चमचमाती गाड़ियों में आँसुओं से भीगा एक चेहरा
बाहर साइकल पर बैठे मुस्कुराते जोड़े को देख
उसकी क़िस्मत से रश्क कर रहा है

ऐसे ही समृद्ध है दुनिया
हर एक आँख में एक सपना
हर मन में एक चाह
इसके सपने, उसकी हक़ीक़त
सब गड्डमगड्ड

एल ई डी की बड़ी-सी स्क्रीन पर
छोटी-छोटी ख़ुशियों के एवज़ में सपने बिक रहे हैं।

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