Poems: Roopali Tandon
1
स्तब्ध खड़ा है ईश्वर
कैसे भरता है वो प्राण
मिट्टी के ढेलों में,
कैसे छीन लेते हैं प्राण
कुछ और मिट्टी के ढेले।
अब वो बोए शान्ति के फूल
या उखाड़ फेंके नागफनी,
ईश्वर प्रतीक्षा में है।
2
डरती हैं लड़कियाँ
हाथ पीले होने से,
दान की गयी वस्तु की
वापसी नहीं होती।
3
तलाश में रहता हूँ
किसी पेड़ की आजकल,
अरसे से
किसी अपने से लिपटकर
रोया नहीं हूँ।
4
प्रेम उतरता है
आँखों में तुम्हारी
और आत्मा तक
पहुँच जाता है।
धूप से भरे जीवन
में प्रेम आता है
और गुदगुदाकर
चला जाता है,
छालों से भरी जीभ
पर ठहरता है प्रेम
पल भर के लिए
और स्वाद सदियों तलक
रह जाता है।
मंदिरों में घण्टों पर
बजता है प्रेम और
ईश्वर के तलुवे के
नीचे रह जाता है।
5
सबके भीतर
है एक जंगल,
फ़र्क़ महज़ इतना
कि जानवर
बचाने को
रहते हैं व्याकुल
और हम
बरबाद
करने को आतुर।
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