‘Poorvajon Ke Aansoo’, a poem by Bikram Bumrah
मैं तुम्हें छूने ही वाला था
कि अचानक मेरे हाथ काँपे
एक चीख़ सुनायी दी
औरत की चीख़
किसी की माँ
बहन
या बेटी की चीख़
अँधेरे तड़प उठे
आग चूल्हे छोड़कर
छाती में आ लगी
चीख ऊँची होती गयी
एक डरावना सपना दिखायी दिया
बिखरे बालों वाली लड़की भागती हुई
टूटती-बिखरती चूड़ियाँ
शाही दस्तारों पर ख़ून के दाग़
बादशाहों के गिरते हुए मुकुट
जैसे-जैसे चीख़ ऊँची हुई
सब नर देवताओं की मूर्तियाँ काँपने लगीं
दिखे मुझे अपने पूर्वजों में
जन्मों-जन्मों के पापी
चीर हरण करते हुए दुशासन
नाक काटते हुए लक्ष्मण
और अपहरण करते हुए रावण
तुम आयी थीं मेरे पास
एक कोरा काग़ज़ बनकर
और बोली थीं –
लिख दो मेरे बदन पर
मोहब्बत में झूमती कोई ग़ज़ल,
संगीत की भाषा में कविता का इतिहास,
ब्रह्माण्ड की गूँज से निकला हुआ कोई गीत
लेकिन इससे पहले कि मैं तुम्हारी सफ़ेद सतह को छू पाता
इससे पहले कि लिख पाता मैं तुम्हारी क़िस्मत में प्रेम के ढाई अक्षर
दिखा मुझे अपनी क़लम पर लगा हुआ ज़ंग
अपनी दवात में सियाही की जगह भरा ख़ून
और दिखे वो हज़ारों क़िस्सागो
मेरे दूर के रिश्तेदार
दिया था जिन्होंने लूणा को बेशर्म तवायफ़ का दर्जा
लगाए थे जिन्होंने साहिबा पर धोखेबाज़ी के तमग़े
और लिखी थी जिन्होंने हीर की तक़दीर में मुक्ति के नाम पर मौत
अपने काँपते हुए हाथों में
गुस्ताख़ क़लम लेकर
खड़ा रहा मैं
माँ काली की अदालत में
अकेला
शर्मसार
जहाँ बढ़ती ही जा रही थी उस चीख़ की आवाज़
कि अचानक सपना टूटा
और आ रहे थे मेरी आँखों में
मेरे पूर्वजों के आँसू।
यह भी पढ़ें:
अमर दलपुरा की कविता ‘पुरखों की आस्था’
निशांत उपाध्याय की कविता ‘पुरखों का पानी’