मेरी मुस्कुराहट हमेशा से झूठी नहीं थी,
और न ही मैं कभी उलझा हुआ था।
बस मोहब्बत से नफरत सी है तुम्हारे बाद।
तुम मुझे न तो मिल पायीं, न मैं कभी खो ही पाया तुम्हें।
मगर ढूंढता रहा तुम्हें सूखे कुँए में पानी की तरह,
मेरी ख्वाहिशें भी अब सूख चुकी हैं
इश्क की ख्वाहिशें,
कुआं अब खाली है।
एक वक्त था जब मुझ कुँए के आसपास लोग रहते थे,
मेरी वजह से लोगों की प्यास दूर होती थी,
मगर तुम गयीं तो जैसे कुएँ को अंदरूनी पाताल से जोड़ने वाली कोई कड़ी भी आपने साथ ही ले गईं।
लोग अब भी आतें हैं मेरे पास आंखों में मेरे वो होने की चमक लिये,
जो मैं अब नहीं रहा,
मेरी गहराई में उतर कर अब तुम डूब नहीं सकते
सिर्फ फँस सकते हो।