स्थगित नहीं होगा शब्द—
घुप्प अंधेरे में
चकाचौंध में
बेतहाशा बारिश में
चलता रहेगा
प्रेम की तरह,
प्राचीन मन्दिर में
सदियों पहले की व्याप्त प्रार्थना की तरह—
स्थगित नहीं होगा शब्द—
मौन की ओट हो जाएगा शब्द
नीरव प्रतीक्षा करेगा शब्द
धीरज में धँसा रहेगा शब्द।
उसके देह की द्युति-सा
उसके चेहरे की आभा-सा
उसके नेत्रों के चकित आश्चर्य-सा
अन्तरिक्ष में
सुगबुगाता रहेगा शब्द
स्थगित नहीं होगा।
अशोक वाजपेयी की कविता 'कितने दिन और बचे हैं?'