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भीड़
'Bheed', a poem by Adarsh Bhushan
भीड़ ने
सिर्फ़
भिड़ना सीखा है,
दस्तक तो
सवाल देते हैं
भूखी जून के
अंधे बस्त के
टूटे विश्वास के
लंगड़े तंत्र के
लाइलाज स्वप्न के-
कि इस बार
चुनाव...
दंगा
'Danga', poems by Gorakh Pandey
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आओ भाई बेचू, आओ
आओ भाई अशरफ़, आओ
मिल-जुल करके छुरा चलाओ
मालिक रोज़गार देता है
पेट काट-काटकर छुरा मँगाओ
फिर मालिक की दुआ मनाओ
अपना-अपना धरम...