‘Danga’, poems by Gorakh Pandey

1

आओ भाई बेचू, आओ
आओ भाई अशरफ़, आओ
मिल-जुल करके छुरा चलाओ
मालिक रोज़गार देता है
पेट काट-काटकर छुरा मँगाओ
फिर मालिक की दुआ मनाओ
अपना-अपना धरम बचाओ
मिलजुल करके छुरा चलाओ
आपस में कटकर मर जाओ
छुरा चलाओ, धरम बचाओ
आओ भाई, आओ, आओ!

2

छुरा भोंककर चिल्लाये
हर हर शंकर
छुरा भोंककर चिल्लाये
अल्लाहो अकबर
शोर ख़त्म होने पर
जो कुछ बच रहा
वह था छुरा
और
बहता लोहू…

3

इस बार दंगा बहुत बड़ा था
ख़ूब हुई थी
ख़ून की बारिश
अगले साल अच्छी होगी
फ़सल
मतदान की…

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