Tag: Faiz Ahmad Faiz
पास रहो
तुम मेरे पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
जिस घड़ी रात चले,
आसमानों का लहू पी के सियह रात चले
मरहम-ए-मुश्क लिए, नश्तर-ए-अल्मास लिए
बैन करती हुई, हँसती...
दर्द आएगा दबे पाँव
और कुछ देर में जब फिर मेरे तन्हा दिल को
फ़िक्र आ लेगी कि तन्हाई का क्या चारा करे
दर्द आएगा दबे पाँव लिए सुर्ख़ चराग़
वो जो...
इस वक़्त तो यूँ लगता है
इस वक़्त तो यूँ लगता है, अब कुछ भी नहीं है
महताब न सूरज, न अँधेरा न सवेरा
आँखों के दरीचों पे किसी हुस्न की चिलमन
और...
इन्तिसाब
आज के नाम
और
आज के ग़म के नाम
आज का ग़म कि है ज़िन्दगी के भरे गुलसिताँ से ख़फ़ा
ज़र्द पत्तों का बन
ज़र्द पत्तों का बन जो मिरा...
कुत्ते
ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
कि बख़्शा गया जिनको ज़ौक़-ए-गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इनका
जहाँ-भर की दुत्कार इनकी कमाई
न आराम शब को, न राहत सवेरे
ग़लाज़त...
गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ-बहार चले
गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज...
चंद रोज़ और मेरी जान
चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पे मजबूर हैं हम
और कुछ देर सितम सह लें, तड़प...
बुख़ारी साहब
'Bukhari Sahab', a Memoir (Sansmaran) by Faiz Ahmad Faiz
..."दोस्ती तनदिही और मुस्तैदी का नाम है यारो, मुहब्बत तो योंही कहने की बात है। देखो...
तुम अपनी करनी कर गुज़रो
अब क्यूँ उस दिन का ज़िक्र करो
जब दिल टुकड़े हो जाएगा
और सारे ग़म मिट जाएँगे
जो कुछ पाया खो जाएगा
जो मिल न सका वो पाएँगे
ये...
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न माँग
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरी महबूब न माँग
मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या...
बोल
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुत्वाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक तेरी है
देख कि आहन-गर की...
हम देखेंगे
'Hum Dekhenge', a nazm by Faiz Ahmad Faiz
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम...