Tag: Fate

Badrinarayan

अपेक्षाएँ

कई अपेक्षाएँ थीं और कई बातें होनी थीं एक रात के गर्भ में सुबह को होना था एक औरत के पेट से दुनिया बदलने का भविष्य...
Balbir Singh Rang

ओ समय के देवता, इतना बता दो

ओ समय के देवता! इतना बता दो— यह तुम्हारा व्यंग्य कितने दिन चलेगा? जब किया, जैसा किया, परिणाम पाया हो गए बदनाम ऐसा नाम पाया, मुस्कुराहट के नगर...
Shrikant Verma

वह मेरी नियति थी

कई बार मैं उससे ऊबा और नहीं—जानता—हूँ—किस ओर चला गया। कई बार मैंने संकल्प किया। कई बार मैंने अपने को विश्वास दिलाने की कोशिश की— हम में से हरेक सम्पूर्ण है। कई बार मैंने...
Sushant Supriye

कविताएँ: नवम्बर 2020

विडम्बना कितनी रोशनी है फिर भी कितना अँधेरा है कितनी नदियाँ हैं फिर भी कितनी प्यास है कितनी अदालतें हैं फिर भी कितना अन्याय है कितने ईश्वर हैं फिर भी कितना अधर्म...
Jainendra Kumar

अपना अपना भाग्य

"इसे खाने के लिए कुछ देना चाहता था", अंग्रेजी में मित्र ने कहा- "मगर, दस-दस के नोट हैं।" मैंने कहा- "दस का नोट ही दे दो।" सकपकाकर मित्र मेरा मुँह देखने लगे- "अरे यार! बजट बिगड़ जाएगा। हृदय में जितनी दया है, पास में उतने पैसे तो नहीं हैं।"
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