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‘कहीं नहीं वहीं’ से कविताएँ
'कहीं नहीं वहीं' से कविताएँ
सिर्फ़ नहीं
नहीं, सिर्फ़ आत्मा ही नहीं झुलसेगी
प्रेम में
देह भी झुलस जाएगी
उसकी आँच से
नहीं, सिर्फ़ देह ही नहीं जलेगी
अन्त्येष्टि में
आत्मा भी...
सुख
रहता तो सब कुछ वही है
ये पर्दे, यह खिड़की, ये गमले...
बदलता तो कुछ भी नहीं है।
लेकिन क्या होता है
कभी-कभी
फूलों में रंग उभर आते हैं
मेज़पोश-कुशनों...