Tag: Kuber Dutt
अब मैं औरत हूँ
मेरे आक़ा
खिड़कियों के सुनहरे शीशे
अब काले पड़ चुके हैं
उधर मेरा रेशमी लिबास
तार-तार
कमरबन्द के चमकीले गोटे में
पड़ चुकी फफून्द
तुम्हारे दिए चाबुक के निशान
मेरी पीठ से...
टीवी पर भेड़िए
भेड़िए
आते थे पहले जंगल से
बस्तियों में होता था रक्तस्राव
फिर वे
आते रहे सपनों में
सपने खण्ड-खण्ड होते रहे।
अब वे टीवी पर आते हैं
बजाते हैं गिटार
पहनते हैं...
स्त्री के लिए जगह
कोई तो होगी
जगह
स्त्री के लिए
जहाँ न हो वह माँ, बहिन, पत्नी और
प्रेयसी
न हो जहाँ संकीर्तन
उसकी देह और उसके सौन्दर्य के पक्ष में
जहाँ
न वह नपे फ़ीतों...
हट जा… हट जा… हट जा
आम रास्ता
ख़ास आदमी...
हट जा, हट जा, हट जा, हट जा।
ख़ास रास्ता
आम आदमी
हट जा, हट जा, हट जा, हट जा।
धूल फाँक ले,
गला बन्द कर,
जिह्वा काट...