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Malkhan Singh

मैं आदमी नहीं हूँ

1 मैं आदमी नहीं हूँ स्साब जानवर हूँ दोपाया जानवर जिसे बात-बात पर मनुपुत्र—माँ चो, बहन चो, कमीन क़ौम कहता है। पूरा दिन बैल की तरह जोतता है मुट्ठी-भर सत्तू मजूरी में देता है। मुँह...
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मुझे ग़ुस्सा आता है

मेरा माँ मैला कमाती थी बाप बेगार करता था और मैं मेहनताने में मिली जूठन को इकट्ठा करता था, खाता था। आज बदलाव इतना आया है कि जोरू मैला...
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आज़ादी

वहाँ वे तीनों मिले धर्मराज ने कहा, पहले से— दूर हटो तुम्हारी देह से बू आती है सड़े मैले की। उसने उठाया झाड़ू मुँह पर दे मारा। वहाँ वे तीनों मिले धर्मराज...
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सुनो ब्राह्मण

'Suno Brahman', Hindi Kavita by Malkhan Singh (1) हमारी दासता का सफर तुम्हारे जन्म से शुरू होता है और इसका अन्त भी तुम्हारे अन्त के साथ होगा। (2) सुनो ब्राह्मण हमारे पसीने...
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