Tag: Prabha Khaitan
बन्द कमरे में
बन्द कमरे में
मेरी सब चीज़ें अपना परिचय खोने लगती हैं
दीवारों के रंग धूमिल
नीले पर्दे फीके
छत पर घूमता पंखा
गतिहीन।
तब मैं निकल पड़ती हूँ—बाहर,
फुटपाथ पर मूँगफली...
तुम जानते हो
'अपरिचित उजाले' से
तुम जानते हो
मैंने तुम्हें प्यार किया है
साहस और निडरता से
मैं उन सबके सामने खड़ी हूँ
जिनकी आँखें
हमारे सम्बन्धों पर प्रश्नवाचक मक्खियों की तरह...
मेरे और तुम्हारे बीच
'अपरिचित उजाले' से
मेरे और तुम्हारे बीच
अब वह नहीं रहा
जिसे हम आज तक
प्यार समझे जिए।
प्यार तुम्हारी एक आदत
महज़ जीने की सुविधा
ठीक जैसे, मेज़, कुर्सी
या अपनी...