Tag: Reclaiming Spaces
पूजा शाह की कविताएँ
पाज़ेब
पाज़ेब पाँवों में नहीं
स्तनों पर पहनने से सार्थक होंगी
जब औरतें क़दम रखती हैं
पकौड़ियों की थाली लिए
आदमियों से भरे कमरे में
उनकी गपशप के बीच
या जब...
हठी लड़कियाँ
वो कौन था
आया था अकेले
या पूरे टोले के साथ
नोच लिए थे जिनके हाथों ने
स्वप्नों में उग रहे फूल
रात हो गई तब और गाढ़ी अपने...
स्त्री के लिए जगह
कोई तो होगी
जगह
स्त्री के लिए
जहाँ न हो वह माँ, बहिन, पत्नी और
प्रेयसी
न हो जहाँ संकीर्तन
उसकी देह और उसके सौन्दर्य के पक्ष में
जहाँ
न वह नपे फ़ीतों...