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Sarwat Zahra

बे परों की तितली

ये झाड़न की मिट्टी से मैं गिर रही हूँ ये पंखे की घूं-घूं में मैं घूमती हूँ ये सालन की ख़ुशबू पे मैं झूमती हूँ मैं बेलन से चकले पे बेली...
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