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मैंने कभी चिड़िया नहीं देखी
'Maine Kabhi Chidiya Nahi Dekhi', a poem by Usha Dashora
अबकी बार जो आँख की पलक का बाल टूटे
उल्टी मुठ्ठी पर रख
माँगना विश
कि
तुम्हारे मोबाइल की...
पुरखों की आस्था
'Purkhon Ki Aastha', Hindi Kavita by Amar Dalpura
हम ने पानी के अर्थ में पानी को,
हवा के अर्थ में हवा को नहीं समझा
हमारे पूर्वजों की...
पतन की ओर
गले तक रेत भरी हुई
मछलियाँ आसमान पर
टकटकी लगाये प्यास से
तड़प रही हैं
कुपोषण की शिकार
नदी दम तोड़ने की कगार पर है
सभ्यता के
आख़िरी दिनों का कचरा
जमा...