Tag: Shamsher Bahadur Singh
चुका भी हूँ मैं नहीं
चुका भी हूँ मैं नहीं
कहाँ किया मैनें प्रेम
अभी।
जब करूँगा प्रेम
पिघल उठेंगे
युगों के भूधर
उफन उठेंगे
सात सागर।
किन्तु मैं हूँ मौन आज
कहाँ सजे मैनें साज
अभी।
सरल से भी...
शमशेर बहादुर सिंह के नाम पत्र
शमशेर बहादुर सिंह को मुक्तिबोध का पत्र
घर न० 86, विष्णु दाजी गली,
नई शुक्रवारी, सरकल न० 2
नागपुर
प्रिय शमशेर,
कुछ दिन पूर्व श्री प्रभाकर पुराणिक को लिखे...
तुमको पाना है अविराम
'टूटी हुई बिखरी हुई' से
तुमको पाना है, अविराम
सब मिथ्याओं में,
ओ मेरी सत्य!
मुझसे दूर अलग न जाओ।
मुझको छोड़ न दो
कहीं मुझको छोड़ न दो
तुम्हें मेरे...
ईश्वर अगर मैंने अरबी में प्रार्थना की
यह कविता यहाँ सुनें:
https://youtu.be/btEtNpgbADs
ईश्वर अगर मैंने अरबी में
प्रार्थना की, तू मुझसे
नाराज़ हो जाएगा?
अल्लमह यदि मैंने संस्कृत में
संध्या कर ली तो तू
मुझे दोज़ख़ में डालेगा?
लोग...
प्रेम
द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
सांसारिक व्यवहार न ज्ञान
फिर भी मैं करता...
फिर भी क्यों
फिर भी क्यों मुझको तुम अपने बादल में घेरे लेती हो?
मैं निगाह बन गया स्वयं
जिसमें तुम आँज गईं अपना सुर्मई साँवलापन।
तुम छोटा-सा हो ताल,...
हमारे दिल सुलगते हैं
'Humare Dil Sulagte Hain', a poem by Shamsher Bahadur Singh
लगी हो आग जंगल में कहीं जैसे,
हमारे दिल सुलगते हैं।
हमारी शाम की बातें
लिये होती हैं...
उषा
कविता संग्रह: 'टूटी हुई बिखरी हुई'
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल ज़रा...
आओ
1
क्यों यह धुकधुकी, डर -
दर्द की गर्दिश यकायक साँस तूफान में गोया।
छिपी हुई हाय-हाय में
सुकून
की तलाश।
बर्फ के गालों में है खोया हुआ
या ठंडे पसीने...
अमन का राग
सच्चाइयाँ
जो गंगा के गोमुख से मोती की तरह बिखरती रहती हैं
हिमालय की बर्फ़ीली चोटी पर चाँदी के उन्मुक्त नाचते
परों में झिलमिलाती रहती हैं
जो एक...
धूप कोठरी के आईने में
'Dhoop Kothari Ke Aaine Mein', a poem by Shamsher Bahadur Singh
धूप कोठरी के आईने में खड़ी
हँस रही है,
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुस्कराते
मौन आँगन में
मोम-सा पीला
बहुत...
टूटी हुई, बिखरी हुई
'Tooti Hui Bikhri Hui', a poem by Shamsher Bahadur Singh
टूटी हुई बिखरी हुई चाय
की दली हुई पाँव के नीचे
पत्तियाँ
मेरी कविता
बाल, झड़े हुए, मैल से...