चुका भी हूँ मैं नहीं
कहाँ किया मैनें प्रेम
अभी।
जब करूँगा प्रेम
पिघल उठेंगे
युगों के भूधर
उफन उठेंगे
सात सागर।
किन्तु मैं हूँ मौन आज
कहाँ सजे मैनें साज
अभी।
सरल से भी गूढ़, गूढ़तर
तत्त्व निकलेंगे
अमित विषमय
जब मथेगा प्रेम सागर
हृदय।
निकटतम सबकी
अपर शौर्यों की
तुम
तब बनोगी एक
गहन मायामय
प्राप्त सुख
तुम बनोगी तब
प्राप्य जय!
शमशेर बहादुर सिंह की कविता 'हमारे दिल सुलगते हैं'