दार्शनिक, प्रशिक्षित भौतिकविज्ञानी और धर्मशास्त्री विलियम बी. ड्रीस 2015 से तिलबुर्ग स्कूल ऑफ ह्यूमनिटिज़ में डीन और प्रोफ़ेसर के रूप में सेवाएँ दे रहे हैं। अलावा इसके वह 2008 से ज़्यगोन : जनरल ऑफ़ रिलीजन एंड साइंस में एडिटर भी हैं। वर्तमान आधुनिक, तकनीकीपरक जीवन में धर्म एवं आत्म-बोध विषय पर लिखना उनकी विशेषज्ञता है। प्रस्तुत है उनकी किताब फ़्रॉम नथिंग अनटिल नाऊ (2008) में द स्टोरी ऑफ़ क्रिएशन शीर्षक से शामिल कविता का अनुवाद…

‘The Story of Creation’, a poem by William B. Drees
अनुवाद: उपमा ‘ऋचा’

एक समय था
जब समय का अस्तित्व नहीं था।
समय का कोई चिह्न भी नहीं प्रकट हुआ था तब तक
हाँ, एक समय था
जब समय का कोई अस्तित्व नहीं था
केवल था
एक अज्ञात क्षितिज
एक धुँध
जहाँ हमारे सवाल धुँधला जाते
और कोई अनुगूँज लौटकर नहीं आती…
तब
शुरुआत में,
या शायद शुरुआत में नहीं
एक क्षण के प्रथम खण्ड में
या शायद एक क्षण के प्रथम खण्ड में नहीं,
या उसके आसपास ही
जन्मा हमारा ब्रह्माण्ड
हमारे बग़ैर

…..

अरबों आकाशगंगाओं में
ब्रह्माण्ड ने ख़ुद ही ख़ुद को गढ़ा
धूल के तारे से
धूमिल तारों से
बहुत बाद में
तारों की धूल से
तारों की धूल की धूल से
जिसकी भँवर में गुम था हमारा सूरज
और हमारे घर, हमारी धरती के
कूड़े-कचरे से
इस तरह
दस अरब साल बाद
एक शाम आयी
और फिर सुबह
और फिर पहला दिन…
यह दिन ही जीवन का आरम्भ था
एक आडम्बरहीन आरम्भ
जो था पूर्णतः दिशाहीन
क्योंकि उसकी मुट्ठी में था
असफलता का लम्बा इतिहास
और कभी-कभार हाथ आ जाने वाली
कोई छोटी-सी सफलता
संयोग से
एक अणु ने अपने भीतर जमा कर लीं
कुछ जानकारियाँ
कुछ सूत्र
और वहन करता रहा
पीढ़ी दर पीढ़ी

…..

बीते कल
यानि कुछ हज़ार बरस पहले
शुरू हुई पूरब की ओर की कहानी
जिसमें थीं
बन्दरों की टोलियाँ, चिल्लाहटें, शिकार
और लाठी, पत्थर, आग
और खाना मिलता था
ज्ञान के पेड़ से
जो बन जाता था
कभी-कभी अच्छाई-बुराई का पेड़!
ताक़त, आज़ादी, ज़िम्मेदारी
हाँ ताक़त, आज़ादी, ज़िम्मेदारी…
जानवर बन गए हम
जितना माँगते, ज़्यादा मिल जाता
(लेकिन क्या) इतना ज़्यादा हम वहन कर सकते थे?
धर्म जोड़ता था घर, कुटुम्ब, क़बीले को
देता हर शक्ति का प्रत्युत्तर
चाहे वह पर्वत हो, तूफ़ान, समुद्र,
या हो जन्म और मृत्यु

…..

बीते कल
यानि दस हज़ार बरस पहले
अबेल अपने ही भाई के हाथों मारा गया
हम किसानों को अपनी रोटी खाने में शर्म आयी
धरती के आँसू हमेशा के लिए लाल हो गए
एक नया युग
एक नबी ने राजा और रिआया को चेतावनी दी
एक बढ़ई ने बताया कि ‘लुटेरों से घिरे आदमी को दुश्मन ने बचाया।’
देखो, तौलो और गिनो
अपने ज्ञान को चुनौती दो
और सत्ता को भी!
प्रबोधन अपरिपक्वता से बाहर का रास्ता है।
हमारे भीतर जमा हैं
हमारी विरासतें, मसले, जानकारियाँ और
सन्दूक़ भर कहानियाँ
यहाँ धरती पर
उम्मीद और डर के बीच ही कहीं है
आज़ादी की राह पर
एक महान संकल्पना विचार और करुणा की…

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उपमा 'ऋचा'
पिछले एक दशक से लेखन क्षेत्र में सक्रिय। वागर्थ, द वायर, फेमिना, कादंबिनी, अहा ज़िंदगी, सखी, इंडिया वाटर पोर्टल, साहित्यिकी आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलेखों का प्रकाशन। पुस्तकें- इन्दिरा गांधी की जीवनी, ‘एक थी इंदिरा’ का लेखन. ‘भारत का इतिहास ‘ (मूल माइकल एडवर्ड/ हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया), ‘मत्वेया कोझेम्याकिन की ज़िंदगी’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ द लाइफ़ ऑफ़ मत्वेया कोझेम्याकिन) ‘स्वीकार’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ 'कन्फेशन') का अनुवाद. अन्ना बर्न्स की मैन बुकर प्राइज़ से सम्मानित कृति ‘मिल्कमैन’ के हिन्दी अनुवाद ‘ग्वाला’ में सह-अनुवादक. मैक्सिम गोर्की की संस्मरणात्मक रचना 'लिट्रेरी पोर्ट्रेट', जॉन विल्सन की कृति ‘इंडिया कॉकर्ड’, राबर्ट सर्विस की जीवनी ‘लेनिन’ और एफ़. एस. ग्राउज़ की एतिहासिक महत्व की किताब ‘मथुरा : ए डिस्ट्रिक्ट मेमायर’ का अनुवाद प्रकाशनाधीन. ‘अतएव’ नामक ब्लॉग एवं ‘अथ’ नामक यूट्यूब चैनल का संचालन... सम्प्रति- स्वतंत्र पत्रकार एवम् अनुवादक