तुम कनक किरन के अन्तराल में
लुक-छिपकर चलते हो क्यों?
नत मस्तक गर्व वहन करते
यौवन के घन रस कन झरते
हे लाज भरे सौन्दर्य बता दो
मौन बने रहते हो क्यो?
अधरों के मधुर कगारों में
कल-कल ध्वनि की गुंजारों में
मधु सरिता-सी यह हँसी तरल
अपनी पीते रहते हो क्यों?
बेला विभ्रम की बीत चली
रजनीगन्धा की कली खिली
अब सान्ध्य मलय आकुलित दुकूल
कलित हो यों छिपते हो क्यों?