यह कविता यहाँ देखें:

तुम्हारा मुझे चाँद कहना
मजबूर करता है मुझे
सुन्दर परिधानों, आभूषणों व शृंगार से ढँके रहने को

चाँद की सतह पर चट्टानें हैं,
दाग़ और गड्ढे हैं,
मृत ज्वालामुखी हैं,
लावा के समन्दर हैं,
इन्हीं सबसे मैं भी बनी हूँ
पर ना तुम सूरज की किरणों से इतर चाँद देख पाते हो
ना साज-ओ-सज्जा के बिना मुझे देख पाओगे
समीप आओगे, निराश हो जाओगे

मेरा और तुम्हारा मिलना
कविताओं तक ही सीमित है..।