जहाँ से शुरू हुआ हूँ
वहाँ से पहले से है मेरी शुरुआत
जहाँ हुआ हूँ ख़त्म
वहाँ से आगे चला गया है मेरा सिलसिला
जीवन के विभ्रम की धुँधली याद है
जीवन भूला हुआ अनुक्रम
दोहराता हूँ
भीतर जाता हूँ बाहर
मेरी परछाईं फैलती है
धरती से आसमान तक मेरा आभास है
या सृष्टि मेरा रहस्य खोजती है
भीतर
भटक जाता हूँ तो मैं
तारों में छिटक जाता हूँ
मैं
अवास्तविक हूँ
वास्तव में अवास्तविक हूँ।
नवीन सागर की कविता 'औरत'