जीवन को समृद्धि की भाषा सिखलाते हुए
एक दिन मैंने पाया कि
अवश्य ही कहीं शान्ति का व्याकरण छूट गया है।

दिव्य पुस्तकों की गम्भीरता में समय गंवाने के पश्चात्
किसी बच्चे की उच्छृंखलता में मैंने पाया
कि दुनिया की हर भाषा के लिए रचित
उच्च कोटि का व्याकरण इससे उच्चतर नहीं है।

एक स्त्री की आत्मा पर लगे घावों से जाना मैंने
कि समृद्धियों की पौध वहीं मर जाती है
जहाँ स्मिता पर भी स्मरकथाएँ रची जाती हैं।

आदि से अनादि तक के जितने भी कथानक हैं
उनमें एक स्त्री और बालक का सौन्दर्य निहित है
शेष सब सम्बन्धों में आवश्यकताओं की आपूर्ति है।

पुष्प के कोमलांगी होने भर से वह स्त्री नहीं हो जाता
भ्रमर की उन्मुक्तता उसके बालक होने का प्रमाण नहीं है
जीवन की सकल भाषाएँ उत्साह से रचीं जातीं हैं।

मैं जब से तुम्हारे प्रेम में हूँ
मुझे आधार बनाकर लोकोक्ति घड़ दी गयी है
कि प्रेम संधान करने से भाषाओं के बाँध टूट जाते हैं
आँखों के व्याकरण ही जीवन के सारे काम कर जाते हैं।

राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]