मैं वक़्त से नाराज़ हूँ,
तक़लीफ़ मुझे इसके चलते रहने से नहीं है,
न इसकी रफ़्तार से मुझे कोई दिक्कत है,
पर बीते हुए कल में जो यादे इसने भरी है,
उन लम्हों के बिना आज जीना एक मशक्कत है।

नाराज़गी की एक वजह और भी है,
चलो बीती बातें तो मैं भुला दूँ,
पर मनमानी ये आगे भी करता रहेगा,
मेरे जीवन के हर पहलु को ये
यादों में मेरी भरता रहेगा।

भागूँ कैसे, ये पीछा भी जो नहीं छोड़ता है,
खुदा भी कुछ कम नहीं, जीवन को हमारे वो वक़्त की डोरी से जो जोड़ता है,
माना ये बलशाली है, पर बल का अपने इस्तेमाल ये ठीक नहीं करता है,
मेरी कहानी के जो किस्से मुझे पसंद नहीं,
उन्हें भी ये ज़बरन मेरी किताब में दर्ज़ करता है।

भारत कुरडा
कल्पनाओं को शब्दों के जरिये बयां करने की कोशिश करता हूं, कवी नहीं हूं, पर कविता लिखने की कोशिश करता हु, मेरे मन का हर ख्याल मैं पंक्तियों में पिरोता हु, रातों को वो सब कागज़ पे उतारता हु,जो दिन भर बोझ मन में लिए ढोता हु।