वो सब के सब
एक ही तरफ दौड़ रहे थे
एकदम एक-दूसरे के पीछे,
कुछ धक्के मार रहे थे,
कुछ चाटुकारिता में व्यस्त थे
कुछ उनकी मदद कर रहे थे
तो कुछ इतिहास बदलने
के फेर में थे।
कुछ औंधे मुँह गिर पड़े
हालाँकि-
कुछ का दिल धधकता था
लेकिन-
फेफड़ों के श्वास के लिए
कविता दूषित हो चुकी थी।
वो दौर सदी के महान कवियों का था।
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