आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ?
नभ में घिरती मेघ-मालिका,
पनघट-पथ पर विरह गीत जब गाती कोई कृषक बालिका!
तब मैं भी अपने भावों के पिंजर खोल उड़ाता हूँ!
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ?
जब सावन की रिमझिम बूँदें,
आती है हरिताभ धरा पर, गिरती है पलकों को मूँदे!
धूमिल मेघों में तब मैं पदचाप किसी की सुन पाता हूँ!
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ?
आँधी में उड़ जाता है मन,
पथिक-पिया के विरह-गीत से गुंजित होते शैल-शिखर-वन!
अपने गीतों की पंखुड़ियाँ, अन्तरिक्ष में छितराता हूँ!
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ?
चंदा के दर्पण में आकर,
निशा झाँकती है निज यौवन तारों का शृंगार सजाकर!
तब छंदों में बाँध गगन से, स्वप्न-कुमारों को लाता हूँ!
आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ?