माया एंजेलो की कविता ‘And Still I Rise’ का अनुवाद
कड़वे छली मृषा से इतिहास में तुम्हारे
तुम्हारी लेखनी से मैं न्यूनतम दिखूँगी
धूल-धूसरित भी कर सकते हो मुझे
किन्तु भरे ग़ुबार-सी फिर-फिर उठूँगी
स्त्रीत्व मेरा विचलित करता है क्यों तुम्हें
क्यों घने तिमिर के हो तुम आवरण में
तेल-कूप महिषी की, है छाव मेरी चाल में
स्थित जो मेरे कक्ष में, तुम भरे भ्रम में
जिस तरह है चन्द्र, और उगता सूर्य है
निश्चित विधान है—ज्वार-भाटा-सी चढ़ूँगी
जैसे ऊँची आशा की किरण-सी लहरा उठें
ऐसे ही बारम्बार मैं फिर-फिर उठूँगी
तुमने क्या चाहा था मुझे टूटा हुआ देखना
अवनत रहे माथा, नीची रहें निगाहें
ज्यों लोर गिरे भूमि पर त्यों ढहें कंधे मेरे
दग्ध हिय करेंगी मेरी चीख़ें और आहें
अस्मिता मेरी तुम्हें क्या करती है निरादृत
इतनी डरावनी क्यों लगती हूँ तुमको
निज आँगन की स्वर्ण-खदानों की रानी-सी मैं
कैसे ना बिहसूँ मैं क्यों खलती हूँ तुमको
तुम मार दो भले ही तीखी कटाक्ष गोली
तुम्हारे तीक्ष्ण नेत्र-धार से भी मैं कटूँगी
निज द्वेष को बना लो चाहे तुम हंता मेरा
तूफ़ान की तरह मैं फिर-फिर उठूँगी
क्या मेरी काम्यता से आजिज़ तुम आते हो
या तनिक अचम्भित तुम हुए जाते हो
हीरा मिला हो यूँ चमककर झूमती हूँ मैं
उरु-संधि मध्य जिसे तुम ढँका पाते हो
निर्लज्ज इतिहास की कुटिया के बाहर
उदित हूँ मैं
दुख में डूबी अतीत की जड़ों के ऊपर
उदित हूँ मैं
एक कृष्ण जलधि हूँ मैं, आन्दोलित व विस्तृत
हूँ ज्वार में पली-बढ़ी, सहिष्णु और परिष्कृत
आतंक और भय-भरी रात्रि पीछे छोड़कर
उदित हूँ मैं
उज्जवल अनोखे अरुणोदय के द्वार पर
उदित हूँ मैं
पुरखों की देन है उपहार जो मैं लायी हूँ
किंकर की आशा व स्वप्न बनकर आयी हूँ
उदित हूँ मैं
उदित हूँ मैं
उदित हूँ मैं!
माया एंजेलो की कविता 'मुझे मत दिखाना अपनी दया'