अनेक स्तर थे प्रेम के
और उतने ही रूप

मैंने समय के साथ यह जाना कि
पति, परमेश्वर नहीं होता
वह एक साथी होता है
सबसे प्यारा, सबसे महत्त्वपूर्ण साथी
वरीयता के क्रम में
निश्चित रूप से सबसे ऊपर

लेकिन मैं ज़रा लालची रही

मुझे पति के साथ-साथ उस प्रेमी की भी आवश्यकता रही
जो मेरे जीवन में ज़िन्दा रख सके ज़िन्दगी
सम्भाल सके मेरे बचपन को
ज़िम्मेदारियों की पथरीली पगडण्डी पर,
जो मुझे याद दिलाए
कि मैं अब भी बेहद ख़ूबसूरत हूँ,
जो बिना थके रोज़ मुझे सुना सके
मीर और ग़ालिब की ग़ज़लें,
उन उदास रातों में
जब मुझे नींद नहीं आती
वो अपनी गोद में मेरा सिर रख
गा सके एक मीठी लोरी

मुझे बातों का प्रेम चाहिए था
और एक बातूनी प्रेमी
जिसकी बातें मेरे लिए सुकून हों

क्या तुम जानते हो कि
जिस रोज़ तुम
मुझे बातों की जगह अपनी बाँहों में भर लेते हो
उस रोज़
मैं अपनी नींद और सुकून
दोनों गँवा बैठती हूँ!