बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?

प्राणों की मसोस, गीतों की-
कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं,
आँखों की बूँदें बूँदों पर,
चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं!

रे निठुर किस के लिए
मैं आँसुओं में प्यार खोलूँ?
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?

मत उकसा, मेरे मन मोहन कि मैं
जगत-हित कुछ लिख डालूँ,
तू है मेरा जगत, कि जग में
और कौन-सा जग मैं पा लूँ!

तू न आए तो भला कब-
तक कलेजा मैं टटोलूँ?
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?

तुमसे बोल बोलते, बोली-
बनी हमारी कविता रानी,
तुम से रूठ, तान बन बैठी
मेरी यह सिसकें दीवानी!

अरे जी के ज्वार, जी से काढ़
फिर किस तौल तोलूँ
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?

तुझे पुकारूँ तो हरियातीं-
ये आहें, बेलों-तरुओं पर,
तेरी याद गूँज उठती है
नभ-मंडल में विहगों के स्वर,

नयन के साजन, नयन में-
प्राण ले किस तरह डोलूँ!
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?

भर-भर आतीं तेरी यादें
प्रकृति में, बन राम कहानी,
स्वयं भूल जाता हूँ, यह है
तेरी याद कि मेरी बानी!

स्मरण की जंजीर तेरी
लटकती बन कसक मेरी
बाँधने जाकर बना बंदी
कि किस विधि बंद खोलूँ!

बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?

माखनलाल चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है।