‘Dar Lagta Hai’, a nazm by Shahbaz Rizvi

जागती आँखें
नींद से बोझल
ख़्वाब की जुम्बिश
सर्द हवाएँ
काली रातें
डर लगता था… डर लगता है!

सुबह की किरणें
रेंगते बादल
ओस के कंकर
पैर के छाले
ठण्डी सड़कें
डर लगता था… डर लगता है!

थकी दोपहरें
जलता सूरज
जलती सड़कें
गर्म हवाएँ
पीली दुनिया
डर लगता था… डर लगता है!

ढलता सूरज
डुबती दूनिया
लाल समन्दर
गीली आँखें
उदास तमन्ना
डर लगता था… डर लगता है!

यह भी पढ़ें: ‘हम दोनों का रिश्ता दुःख का रिश्ता था’

Recommended Book: