अभी कुछ दिनों से
मेरी पत्नी किताबें पढ़ने लगी है,
उसकी आँखों पर ज़ोर पड़ता है
कहती है, “साफ़-साफ़ नज़र नहीं आता है,
मुझे चश्मा दो!”

जब चश्मा दिया तो
चश्मे पर लगी बारीक धूल उसे साफ़ नज़र आ गई
और वो चश्मे की धूल साफ़ करने लगी

अब उसकी आँखों से अक्षर धुंधले नज़र आते हैं
मगर कहीं भी जमी हुई
बारीक से बारीक धूल साफ़ दिख पड़ती है उसे

मेरे घर को साफ़ रखते-रखते
कब उसने अपने अक्षरों को धूल में
मिला दिया,
यह इतने वर्षों में पता ही नहीं चला

अब उसे किताबें पढ़ने में अपनी आँखों पर बहुत ज़ोर
डालना पड़ता है
लेकिन अब मैं सोचता हूँ
कहीं उसकी आँखों में मैंने, धूल तो नहीं झोंक दी?!