‘Facebook’, a poem by Asna Badar

कल शब हम ने इस होटल में खाना खाया
‏अच्छा था तो तुम्हें लोकेशन भेज रहे हैं

‏गए दिनों हम टर्की और इंग्लैण्ड गए थे
‏लेकिन थोड़ा बोर हो गए
‏मौसम कुछ ज़्यादा ठण्डा था

‏सालगिरह पर सब आए थे
‏तुमने क्यूँ ना वक़्त निकाला
‏केक बड़ा था
‏फ़ोटो में बस इतना आया

‏बच्चों को स्टार मिले हैं
‏तितली के रंगों को देखो
‏आर्ट में काफ़ी अच्छे हैं वो

‏उर्दू फ़िक्शन
‏इंग्लिश से कुछ कम माया है
‏लेकिन ग़ालिब मीर ने भी कुछ फ़रमाया है

‏फ़िल्मों का तो हाल बुरा है
‏कल बेकारन पैसे फेंके
‏उलटे-सीधे मंज़र देखे

‏आँगन में दो फूल खिले हैं
‏थोड़ी सी शादाबी तुमको भेज रहे हैं

‏ये जो सियासी चेहरे हैं
‏सब इक ड्रामा हैं
‏बे-सर-पैर का
‏हंगामा हैं

‏शेरो-शायरी वक़्त गुज़ारी की बातें हैं
‏तन्हाई में काम आती हैं

‏अच्छा काफ़ी रात हो गई
‏सुबह चाय की अच्छी-सी तस्वीर भेजना
‏हम भी कोई बात लिखेंगे

‏लाइट बुझा दो
‏तार लगा दो।

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